Saturday, March 21, 2009

चैतन चुनरी रगां दे

फागुन बीत गया दोस्तों मौसम में गर्मी है । चुनाव की चर्चा गरम है। रोज एक नया समीकरण बन रहा है और एक टूट रहा है । चैत को लोग भूल ही गए । एक परम्परा थी होली के दिन जो अन्तिम गाना गाया जाता था वह चैती होती थी ।
चैत एक आस लेकर आता था। इसमें मनुहार भी था, एक दर्द भी था। कोई परदेस गए पिया को याद करता था तो कोई अपने पिया से कुछ फरमाइश।
शोभा गुर्टू की यह चैती सुनिए, शायद कुछ रंग बाकी है अभी ?






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