Saturday, March 21, 2009

चैतन चुनरी रगां दे

फागुन बीत गया दोस्तों मौसम में गर्मी है । चुनाव की चर्चा गरम है। रोज एक नया समीकरण बन रहा है और एक टूट रहा है । चैत को लोग भूल ही गए । एक परम्परा थी होली के दिन जो अन्तिम गाना गाया जाता था वह चैती होती थी ।
चैत एक आस लेकर आता था। इसमें मनुहार भी था, एक दर्द भी था। कोई परदेस गए पिया को याद करता था तो कोई अपने पिया से कुछ फरमाइश।
शोभा गुर्टू की यह चैती सुनिए, शायद कुछ रंग बाकी है अभी ?






Wednesday, March 4, 2009

सुना है फागुन आया है

छन-छन के ख़बर आ रही है की फागुन आ गया है । मौसम में गर्मी आ गई है। मिजाज़ तेज़ हवा के पतवार की तरह
इधर उधर भागने लगा है । यह अभी ख़बर ही है । फसल पक गई है और उसे काटने के लिए मुंबई, दिल्ली और कोलकाता से ट्रेनों में लटक कर बाकें नौजावान गाँव के लिए निकल रहे है । कई साल बीत गए, दोस्तों के फ़ोन आते रहते है, इस साल होली में आ रहे हो कि नही ? साफ साफ कुछ भी बता नहीं पाता हूँ ।
जाने दीजिये ये सब आ को भी मालूम है फिर भी न जाने क्यूँ उलूल ज़लूल लिख रहा हूँ । कादो-माटी, नाला-नाली,देवर-भौजी, उँच-नीच, भेद-भाव और हाँ अबीर-गुलाल ।आबिदा यह गायकी शायद मन को थोड़ा सकून दे ।

आज रंग है