Sunday, April 5, 2009

लाल गोपाल

पंडित जसराज का गया गया यह गीत तो होली का है लेकिन सुंदर गीत कभी भी सुने
जा सकते है गजब का जादू है इनके आवाज़ में मेरे लिए तो यह गीत बहुत सुकून देने वाला है
शायद आपको भी मज़ा आए


Saturday, March 21, 2009

चैतन चुनरी रगां दे

फागुन बीत गया दोस्तों मौसम में गर्मी है । चुनाव की चर्चा गरम है। रोज एक नया समीकरण बन रहा है और एक टूट रहा है । चैत को लोग भूल ही गए । एक परम्परा थी होली के दिन जो अन्तिम गाना गाया जाता था वह चैती होती थी ।
चैत एक आस लेकर आता था। इसमें मनुहार भी था, एक दर्द भी था। कोई परदेस गए पिया को याद करता था तो कोई अपने पिया से कुछ फरमाइश।
शोभा गुर्टू की यह चैती सुनिए, शायद कुछ रंग बाकी है अभी ?






Wednesday, March 4, 2009

सुना है फागुन आया है

छन-छन के ख़बर आ रही है की फागुन आ गया है । मौसम में गर्मी आ गई है। मिजाज़ तेज़ हवा के पतवार की तरह
इधर उधर भागने लगा है । यह अभी ख़बर ही है । फसल पक गई है और उसे काटने के लिए मुंबई, दिल्ली और कोलकाता से ट्रेनों में लटक कर बाकें नौजावान गाँव के लिए निकल रहे है । कई साल बीत गए, दोस्तों के फ़ोन आते रहते है, इस साल होली में आ रहे हो कि नही ? साफ साफ कुछ भी बता नहीं पाता हूँ ।
जाने दीजिये ये सब आ को भी मालूम है फिर भी न जाने क्यूँ उलूल ज़लूल लिख रहा हूँ । कादो-माटी, नाला-नाली,देवर-भौजी, उँच-नीच, भेद-भाव और हाँ अबीर-गुलाल ।आबिदा यह गायकी शायद मन को थोड़ा सकून दे ।

आज रंग है

Friday, February 27, 2009

निबुरा निबुरा निबुरा

बहुत पहले एक राजस्थानी लोकगीत सुना था मन में बस गया था । कुछ दिनों के बाद एक हिन्दी फ़िल्म में उसी गाने का अपभ्रंस सुना था वो भी बहुत लोकप्रिय हुआ था । लेकिन मेरा मन उसी राजस्थानी
लोकगीत में अटका हुआ है । आप लोगों ने भी उसे सुना होगा लेकिन फिर भी मैं उसे सुनना चाहता हूँ ।
इस गीत को गाजी मगनियार और उसके ग्रुप ने गाया है। आप भी इसका मज़ा लीजिये।


Thursday, February 26, 2009

मृगनैनी के यार नवल रसिया

आगाज़ पंडित जसराज से कर रहा हूँ । पुराने पिटारे से बहुत कुछ खोज कर निकला है । गाहे बगाहे कुछ सुनने को मिलता रहेगा । ठुमरी वाले विमल भाई से वादा किया था पंडित जसराज को सुनवाने का उसी क्रम कि यह पहली कड़ी है ।